आखिर अंतरिक्ष में कहां रहते हैं ईश्वर,  क्या कभी मनुष्य पहुंच सकता है?

वेद कहते हैं कि ईश्‍वर अजन्मा, अप्रकट और निराकार है। जो अंतरिक्ष में अरबों योजन दूर सत्यलोक में रहकर भी सर्वत्र व्याप्त है

गीता में कहा गया है कि यह सृष्टि उल्टे वृक्ष की भांति है। जहां से बीज उत्पन्न हुआ वहीं पर ईश्वर मौजूद है।

मनुष्य का शरीर भी एक उल्टे वृक्ष की भांति ही है। मस्तिष्क एक बीज का खोल है। इसमें जहां सिर की चोटी हैं वहीं पर बीज स्थित है अर्थात जिसे सहस्रार चक्र कहते हैं।

इस ब्रह्मांड में तपलोक से 12 करोड़ योजन ऊपर सत्यलोक है। उसके पार अनंत ब्रह्म है।

वहां सिर्फ योग की शक्ति से मोक्ष प्राप्त करने के बाद ही जाया जा सकता है। कोई शरीरधारी वहां नहीं जा सकता।

दूसरा यह कि वह ब्रह्म सर्वत्र व्याप्त है, उसी तरह जिस तरह कि सूर्य का प्रकाश सभी दिशाओं में व्याप्त है।

संपूर्ण जगत की उत्पत्ति इसी ब्रह्म से हुई है और संपूर्ण जगत ब्रह्मा, विष्णु, शिव सहित इस ब्रह्म में ही लीन हो जाता है।

यह एक जगह प्रकाश रूप में स्थिर रहकर भी सर्वत्र व्याप्त है। यही सनातन सत्य है जिसमें वेदों के अनुसार 64 प्रकार के आयाम समाए हुए हैं

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